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डॉक्टरों की डिग्रियां (Doctor degrees)

  MBBS (बैचलर ऑफ मेडिसिन और बैचलर ऑफ सर्जरी) के बाद चिकित्सा विज्ञान में स्नातक स्तर की डिग्री प्राप्त की जाती है। यह डिग्री एक न्यूनतम पात्रता है और इसके बाद छात्र विभिन्न डिग्री या विशेषता की ओर बढ़ सकते हैं। यहां कुछ प्रमुख डिग्री की सूची है जो MBBS के बाद प्राप्त की जा सकती है: 1. डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (MD): यह प्रोफेशनल डिग्री चिकित्सा विज्ञान के उच्चतर स्तरीय विशेषज्ञता को प्रदान करती है। एमडी के अनुभागों में मेडिसिन, न्यूरोलॉजी, कार्डियोलॉजी, डर्मेटोलॉजी, पीडियाट्रिक्स, रेडियोलॉजी, प्लास्टिक सर्जरी, और अन्य शामिल हो सकते हैं। यह डिग्री छात्रों को विशेषता में मास्टरी प्राप्त करने का अवसर देती है और उन्हें विभिन्न स्वास्थ्य सेवा प्रदाता संगठनों, अस्पतालों या विश्वविद्यालयों में नियुक्त किया जा सकता है। 2. डॉक्टर ऑफ सर्जरी (MS): यह डिग्री शल्य चिकित्सा के उच्चतर स्तरीय विशेषज्ञता को प्रदान करती ह ै। MS के अनुभागों में जैसे कि जनरल सर्जरी, एन्ट, ऑर्थोपेडिक्स, गाइनेकोलॉजी, यूरोलॉजी, न्यूरोसर्जरी, और विशेष रूप से विभिन्न शल्य विज्ञानों को शामिल किया जा सकता है। यह डिग्री सुर्जरी में विशेष

गॉल ब्लैडर हटाने की शल्य चिकित्सा

  गॉल ब्लैडर (Gall bladder) हमारे पाचन तंत्र में एक महत्वपूर्ण अंग है जो पाचन क्रिया में मदद करता है। यह पत्थरों (गॉल स्टोन्स) के बनने का स्थान भी होता है और पाचन रसों को स्टोर भी करता है। गॉल ब्लैडर नदी (गॉल ब्लैडर डक्ट) द्वारा पत्थरों को छोड़ता है और पाचन रसों को अपने महत्वपूर्ण भूमिका में मदद करता है। गॉल ब्लैडर हटाने की शल्य चिकित्सा (Gall bladder removal surgery) या कोलेस्टेक्टोमी (Cholecystectomy) कहलाती है। यह विधि जब तक गॉल ब्लैडर की समस्याओं के लिए सुझावों और औषधियों से निदान नहीं होता है, तब किया जाता है। यह अवसादी तरीका है जिसमें गॉल ब्लैडर को पूरी तरह से हटा दिया जाता है। कोलेस्टेक्टोमी दो तरीकों से की जा सकती है: 1. खुली शल्य चिकित्सा (Open Surgery): इसमें चिकित्सक एक बड़ी कटाई करके पेट के ऊपरी हिस्से में पहुंचते हैं और गॉल ब्लैडर को हटा देते हैं। यह उपचार बड़ी गॉल स्टोन्स, संक्रमण या गॉल ब्लैडर की स मस्याओं के लिए आवश्यक हो सकता है। 2. लेप्रोस्कोपिक शल्य चिकित्सा (Laparoscopic Surgery): इस तकनीक में, चिकित्सक छोटे चीरों के माध्यम से गॉल ब्लैडर को हटा देते हैं। इसमें एक छो

फैटी लिवर: कारण और उपचार

  फैटी लिवर या स्टीटोहेपाटाइटिस, एक सामान्य रूप से अनुक्रमिक रूप से विकसित होने वाली समस्या है जिसमें आपके लिवर में अतिरिक्त वसा जमा हो जाता है। यह स्थिति आपके लिवर को स्वस्थ्य रूप से काम करने में असमर्थ बना सकती है और इसे विकारी बना सकती है। फैटी लिवर के कई कारण हो सकते हैं, जैसे: 1. अल्कोहलिक या नशीले पेय: अधिक मात्रा में अल्कोहल या अन्य नशीले पेय का सेवन करने से लिवर का विकास हो सकता है। 2. मोटापा और अस्वस्थ आहार: अधिक मात्रा में भोजन का सेवन करना और मोटापा लिवर में वसा जमा कर सकता है। 3. डायबिटीज: डायबिटीज के मरीजों में उच्च रक्त शर्करा स्तर से लिवर को नुकसान पहुंच सकता है और फैटी लिवर का कारण बन सकता है। 4. मेटाबोलिक सिंड्रोम: मेटाबोलिक सिंड्रोम शरीर की कुछ बीमारियों (मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा) के संयोग के कारण होता है, जो फैटी लिवर का कारण बन सकता है। फैटी लिवर का उपचार निम ्नलिखित मामलों पर निर्भर करता है: 1. बदलते आहार: स्वस्थ और नियमित आहार लेना, जिसमें कम मात्रा में वसा, उच्च प्रोटीन और पूरे अनाज शामिल हों। मीठा, पकाने के तेल, प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों और शराब का सेवन कम कर

नींद में पेशाब की समस्या 10 से 18 साल के बच्चो को क्यो होती है नींद में पेशाब

  10 से 18 साल के बच्चों में नींद में पेशाब की समस्या होने के कई कारण हो सकते हैं। यह आमतौर पर "नींद में बेड़-बाथरूम करना" या "नींद में यूरिनेशन" के रूप में जाना जाता है। इसके कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हो सकते हैं: 1. विकासात्मक कारण: बच्चों के शरीर के अंग समय-समय पर विकसित होते रहते हैं, जिसके कारण पेशाब कंट्रोल करने का क्षमता सही तरीके से विकसित नहीं हो सकती है। यह कारण अधिकांश बच्चों में सामान्य होता है और समय के साथ अपने आप ही ठीक हो जाता है। 2. अधिक पीना: यदि बच्चा रात में ज्यादा पानी पीता है, तो उसकी मूत्राशय में अधिक मात्रा में मूत्र बनता है, जिसके कारण वह नींद में पेशाब कर सकता है। 3. गहरी नींद: कुछ बच्चों को इतनी गहरी नींद होती है कि उनके दिमाग को यह महसूस नहीं होता कि उन्हें पेशाब करने की आवश्यकता है। 4. तनाव या चिंता: चिंता, तनाव या चिंता भरे स्थितियों में, बच्चों को नींद में अपने मूत ्र संबंधी इंद्रियों को कंट्रोल करने में समस्या हो सकती है। 5. स्वास्थ्य समस्याएं: कई स्वास्थ्य समस्याएं भी नींद में पेशाब की समस्या का कारण बन सकती हैं, जैसे कि मूत्र मार्ग

हिपेटाइटिस के लक्षण (Hepatitis Symptoms)

  हिपेटाइटिस एक रोग है जो अक्रिय या सक्रिय रूप से लिवर की संक्रमण और सूजन का कारण बनता है। यह एक इन्फेक्शन रोग है जो वायरस, बैक्टीरिया, या अन्य कारकों के कारण हो सकता है। हिपेटाइटिस कई प्रकार की होती है, प्रमुख रूप से आइएचवी (HCV), एचबीवी (HBV), और सी (C) वायरस के इंफेक्शन के कारण होती हैं। हिपेटाइटिस ए, बी, सी, डी, और ई के मुख्य रूप से पांच प्रकार होते हैं। हिपेटाइटिस के लक्षण और संकेत मायने रखते हैं, इसलिए यह अलग-अलग मानव वायरसों के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। हालांकि, कुछ सामान्य लक्षण इसमें शामिल हो सकते हैं, जैसे कि थकान, पेट में दर्द, उबकाई, उल्टी, बौद्धिक कमजोरी, रंग की हल्की पीलापन, त्वचा में खुजली, आंखों और नाखूनों की पीलापन, और मूत्र या बबासीर में रंग का परिवर्तन। हिपेटाइटिस का पूर्ण निदान करने के लिए चिकित्सकीय परीक्षण, जैसे कि रक्त परीक्षण और इमेजिंग टेस्ट, किया ज ाता है। उपचार का निर्धारण हिपेटाइटिस के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है। कुछ मामलों में, इलाज के लिए दवाओं का उपयोग किया जाता है, जबकि कुछ मामलों में टीकाकरण (वैक्सीनेशन) भी संभव होता है। संक्रमण के गंभीर मामलो

Meningitis क्या होता है ?

  मेनिंगाइटिस मस्तिष्क की सूजन और इन्फेक्शन को कहा जाता है। यह रोग मस्तिष्क की ऊपरी परत, जिसे आराच्नॉयड मेम्ब्रेन कहा जाता है, और मस्तिष्क की रीढ़ की हड्डी के बीच होने वाले स्थान पर प्रभावित होता है। मेनिंगाइटिस अक्सर वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण के कारण होता है। यह रोग आमतौर पर खांसी, बुखार, शीघ्र आत्मिकता, सिरदर्द, ऊब, थकान और अन्य लक्षणों के साथ शुरू होता है। कुछ लोगों में उल्टी, खराब पाचन, अक्षमता या बार-बार उठने वाली इच्छा भी हो सकती है। अगर इसे गंभीरता से न लिया जाए तो यह बहुत हानिकारक हो सकता है और मस्तिष्क में संक्रमण फैलने का खतरा हो सकता है। मेनिंगाइटिस का उपचार विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह पर आधारित होता है। यह रोग दवाओं, जैसे कि एंटीबायोटिक्स, और अन्य उपचार, जैसे कि आराम, आहार और पीने के नियमित पालन, द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। बैक्टीरियलमेनिंगाइटिस के लिए टीकाकरण भी उपलब्ध है, जिससे यह रोग रोका जा सकता है। मेनिंगाइटिस एक गंभीर बीमारी होने के कारण, यदि आपको इसके लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो तुरंत एक चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। बैक्टीरियल मेनिंगाइटिस एक गंभीर स्थिति होती ह

ओलिगोस्पर्मिया की जानकारी

  ओलिगोस्पर्मिया यह एक महाशय विकार है जिसमें पुरुषों के शुक्राणुओं की मात्रा असामान्य रूप से कम होती है। यह एक प्रजनन क्षमता से संबंधित समस्या है जो पुरुषों में पायी जा सकती है।  शुक्राणुओं का माप या गिनती मिलीलीटर (ml) में होता है, और ओलिगोस्पर्मिया के अनुसार, शुक्राणुओं की मात्रा निम्न होती है। आमतौर पर, यदि प्रति मिलीलीटर (ml) में शुक्राणुओं की संख्या 15 मिलियन से कम होती है, तो इसे ओलिगोस्पर्मिया कहा जाता है। इस स्थिति में, पुरुषों की प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है और उन्हें गर्भधारण करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। इसके कारण कभी-कभी संतान प्राप्ति में देरी हो सकती है। ओलिगोस्पर्मिया के कारण कई हो सकते हैं, जैसे कि विषाणु निर्माण और मैट्यूरेशन की समस्याएं, शुक्राणुओं की उत्पादन को प्रभावित करने वाली बीमारियाँ, हॉर्मोनल असंतुलन, या उपयोगी परिवर्तनों के कारण शुक्राणुओं के निष्कासन में कमी। ओलिगोस्पर्मिया का संभावित उपचार व्यक्ति के लिए निर्धारित करेगा उनके शुक्राणुओं की मात्रा को प्रभावित करने वाले कारणों पर आधारित होगा। यह उपचार शामिल कर सकता है दवाओं का सेवन, स्वस्थ

थाइरोइड से बचने के उपाय।

  थाइरोइड रोग को प्रभावित करने वाले अनेक कारक हो सकते हैं, जैसे कि आपके आहार, जीवनशैली, औषधि का उपयोग, आपकी आनुवंशिकता आदि। यहां कुछ उपाय हैं जिनका पालन करके आप थाइरोइड से बच सकते हैं: 1. स्वस्थ आहार: स्वस्थ और संतुलित आहार खाना थाइरोइड के लिए महत्वपूर्ण है। शाकाहारी भोजन, पर्याप्त पौष्टिकता वाले अनाज, फल, सब्जियां और प्रोटीन युक्त आहार लें। शुगर, प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ, ब्रेड, मैदा, आलू, गोभी, बांसी, मूली, सोया प्रोडक्ट्स, कैफीन, शराब, और बहुत अधिक आयोडीन से युक्त खाद्य पदार्थों को कम से कम खाएं। 2. व्यायाम: नियमित शारीरिक गतिविधि करना थाइरोइड स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो सकता है। योग, प्राणायाम, ध्यान और नियमित व्यायाम जैसे तकनीकों को अपनाएं। 3. स्ट्रेस प्रबंधन: स्ट्रेस थाइरोइड को बढ़ा सकता है, इसलिए स्ट्रेस प्रबंधन तकनीकों का उपयोग करें जैसे कि ध्यान, योग और अवकाश के लिए समय निकालें। मेडिटेशन, दीर्घ श्वासायाम, प्रतियोगितात्मक रिक्रिएशन जैसी तकनीकें आपको स्ट्रेस से राहत दिला सकती हैं। 4. नियमित डॉक्टर की जांच: नियमित रूप से अपने डॉक्टर की जांच कराएं और थाइरोइड संबंधित परीक्षण करवाएं।

थाइरोइड रोग: संक्षिप्त जानकारी

  थाइरोइड ग्लैंड (Thyroid Gland) मानव शरीर में स्थित होता है और हड्डियों के पीछे गले के नीचे स्थित होता है। यह ग्लैंड एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है, जो थाइरोक्सिन (Thyroxine) नामक हार्मोन को उत्पन्न करता है। थाइरोक्सिन हमारे शरीर की ऊर्जा स्तर को नियंत्रित करता है और मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में मदद करता है। थाइरोइड ग्लैंड की समस्याएं थाइरोइड रोग के रूप में जानी जाती हैं। ये समस्याएं तीन प्रमुख तरीकों में हो सकती हैं: 1. हाइपरथाइरॉइडिज़म (Hyperthyroidism): जब थाइरोइड ग्लैंड अत्यधिक थाइरोक्सिन उत्पन्न करता है तो यह स्थिति होती है। इसमें व्यक्ति को अत्यधिक ऊर्जा, तेजी से दिल की धड़कन, थकान, खाने की पागलपन, वजन कम होना, और अनियमित मासिक धर्म के साथ अन्य लक्षण हो सकते हैं। 2. हाइपोथाइरॉइडिज़म (Hypothyroidism): जब थाइरोइड ग्लैंड थाइरोक्सिन उत्पन्न करने में कमी करता है तो यह स्थिति होती है। हाइपोथाइरॉइडिज़म (Hypothyroidism) में थाइरोक्सिन की कमी के कारण व्यक्ति को थकान, ठंड लगना, वजन बढ़ना, मानसिक स्थिति में बदलाव, मानसिक स्पष्टता की कमी, बालों का झड़ना, और शारीरिक गतिशीलता कम हो सकती है। 3. थाइर

प्रोस्टेट ग्लैंड का विवरण।

  प्रोस्टेट ग्लैंड (Prostate Gland) पुरुषों में पाया जाने वाला एक अहम अंग है। यह ग्लैंड लिंग (पुरुष जननांग) के नीचे, मूत्राशय के आसपास स्थित होता है। प्रोस्टेट ग्लैंड की मुख्य फ़ंक्शन है प्रोस्टेटिक तरल (prostatic fluid) का निर्माण करना।  प्रोस्टेट ग्लैंड का आकार एक आंडा के समान होता है, और इसका वजन लगभग 20 ग्राम होता है। यह ग्लैंड मूत्राशय के निकटस्थ होने के कारण उसमें शामिल होने वाली यूरीनरी ट्रैक्ट के रोगों के संकेतक भी हो सकते हैं। प्रोस्टेट ग्लैंड में उच्च क्षेत्रफल वाले एक अंतर्जालीय कणिकाओं (intricate network of ducts) के माध्यम से प्रोस्टेटिक तरल निर्मित होता है। यह तरल स्पर्श, धातुओं के संचरण को सुविधाजनक बनाता है और जब पुरुष संभोग करता है, तो यह तरल वीर्य के साथ मिश्रित हो जाता है। प्रोस्टेटिक तरल वीर्य को ठंडा करता है और उसे सुरक्षित रखने में मदद करता है। अधिकांश मामलों में, प्रोस्टेट ग्लैंड स्वस्थ रहता है। प्रोस्टेट ग्लैंड को स्वस्थ रखने के लिए निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण चरण होते हैं: 1. नियमित जांच: प्रोस्टेट ग्लैंड के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए नियमित चेकअप कराना अत्यंत म

यौन नपुंसकता (ED) समझें।

  इरेक्टाइल डिसफंक्शन (Erectile Dysfunction) या यौन नपुंसकता एक पुरुषों में होने वाली स्वाभाविक यौन क्रियाओं में असमर्थता या पुरुषों के लिए सेक्सुअल आकर्षण प्राप्त करने, या यौन उत्तेजना को बनाए रखने में असमर्थता होना है। इस स्थिति में पुरुष अपने यौन क्षेत्र में सामरिक स्वास्थ्य या काम क्षमता की समस्याओं के कारण अपनी यौन संतुष्टि को प्राप्त नहीं कर पाता है। यह स्थिति कई कारणों से हो सकती है, जिनमें शामिल हैं: 1. सामरिक उत्तेजना को बनाए रखने के लिए यौन संचार के कार्य में कोई समस्या। 2. धातु या यौन निकटता की समस्याएं, जिसमें शामिल हो सकते हैं शारीरिक अस्वस्थता, मानसिक तनाव, डायबिटीज, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, उम्र, तंत्रिका संक्रमण, धूम्रपान और मद्यपान आदि। 3. अत्यधिक मानसिक तनाव या चिंता, यौन संबंधित डर या उपेक्षा। 4. यौन नपुंसकता के लिए उपयोग होने वाली नशीली दवाओं, अवैध दवाओं या अव्यवस्थित लेन देन। 5. वातावरणीय कारकों जैसे कि ध्यान केंद्रित न होना, यौन क्रियाओं की प्रतिबंधितता, अस्वस्थ जीवनशैली, अपूर्ण खानपान, व्यायाम की कमी आदि। 6. सामरिक उत्तेजना को प्रभावित करने वाली औषधियाँ या इलाजी उ

फिस्टुला (भगंदर) का उपचार

  फिस्टुला एक रोग है जिसमें शरीर के दो अलग-अलग जगहों के बीच एक नाली या संबंध बन जाता है। यह नाली आमतौर पर जब दो संदर्भित संरचनाओं के बीच मुख्य रुप से गंध या विषैले तत्वों को बाहर निकालने के लिए बनाई जाती है। यह मुख्य रूप से त्वचा, मलाशय, आंत, नस, नाली या गुदा के बीच बन सकती है। फिस्टुला की मुख्य वजहों में से एक शामिल हैं: 1. संक्रमण: किसी रोगाणु या अन्य पाथोजन के कारण शरीर में संक्रमण होने पर फिस्टुला बन सकती है। 2. गुर्दे की पथरी: कई मामलों में, गुर्दे की पथरी की वजह से भी फिस्टुला बन सकती है। 3. गुदा में एब्सेस: अगर गुदा में एब्सेस (गांठ) बन जाए तो यह एक फिस्टुला का कारण बन सकती है। फिस्टुला के लक्षणों में शामिल हो सकते हैं: - जलन और दर्द का अनुभव - रक्तावरण से पानी या मल की निकलना - गांठ या छाले की उपस्थिति यह मान्य कारणों में से कुछ हैं, लेकिन कृपया ध्यान दें कि फिस्टुला के लक्षण और कारण व्यक्ति के शरीर के स्थान और प्रकार पर निर्भर कर सकते हैं। यह एक चिकित्सा पेशेवर द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए जो आपकी विशेष परिस्थितियों का मूल्यांकन करेगा और उचित उपचार की सिफारिश देगा। उपचार क

बवासीर उपचार और सुझाव

  बवासीर (पाइल्स) एक प्रकार का रोग है जिसमें गुदा (एनस) के आस-पास की नसें सूजन और प्रदाह कर देती हैं। यह एक आम समस्या है और इसे बड़ी संख्या में लोगों में देखा जा सकता है। बवासीर के कारणों में पेट में तनाव, पाचन समस्याएं, प्राकृतिक गर्भावस्था, वृद्धावस्था, बैठने की लंबी अवधि और बहुत सी अन्य कारक शामिल हो सकते हैं। इसके लक्षणों में प्राकृतिक सूजन, खुजली, दर्द और रक्तस्राव शामिल हो सकते हैं। यहां कुछ सामान्य बवासीर के उपचार दिए जाते हैं, लेकिन यदि आपको बवासीर के लक्षण हैं, तो आपको एक विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए ताकि वह आपको सही उपचार का सुझाव दे सके: 1. यथासंभव ठंडे पानी से स्नान करें और गुदा क्षेत्र को स्वच्छ रखें। 2. अवसाद और अंगरक्षक दवाओं का सेवन करें, जैसे कि दर्द कम करने वाली क्रीम और सेटोनिल सूजन कम करने वाली क्रीम। 3. पेट साफ़ रखने के लिए अपनी आहार और पेय की आदतों में परहेज रखे। 4. आपको बवासीर से बचाव के लिए पोष्टिक और ऊर्जा से भरपूर आहार लेना चाहिए। यह सही फाइबर की मात्रा के साथ पूरे अन्नों, फलों, सब्जियों और पूरे अनाज का सेवन शामिल करता है। 5. पेट की प्रयास करने की आवश्यकता हो सक

एसिडिटी के लक्षण और उपचार

  एसिडिटी एक पाचन तंत्र की समस्या है जिसमें पेट के अंदरी भाग में अधिक एसिड उत्पन्न होता है। यह एक आम स्थिति है और यह किसी भी उम्र के लोगों में हो सकती है। एसिडिटी का कारण अलग-अलग हो सकते हैं, जैसे खाने की गलत आदतें, अधिक तापमान, अधिक तनाव, अल्कोहल या धूम्रपान, गैस्ट्रोइंटेस्टिनल समस्याएं आदि। एसिडिटी के लक्षणों में पेट में जलन, तेजी से पेट भरी होने का अनुभव, ऊपरी पेट में तकलीफ या बढ़ती हुई असहजता शामिल हो सकती है। कुछ लोगों को भूख नहीं लगती है और उन्हें अपच या एम्प्टी फीलिंग की शिकायत हो सकती है। एसिडिटी को कम करने के लिए आप कुछ निम्नलिखित उपाय अपना सकते हैं: 1. अल्कालीय खाद्य पदार्थों का सेवन करें: उचित मात्रा में दूध, छाछ, केले, केला पेय, सब्जियां और सफेद चावल आपकी एसिडिटी को कम करने में मदद कर सकते हैं। 2. खाने के बाद बैठने या लेटने से बचें: खाना खाने के तुरंत बाद सीधे लेटे या सोते वक्त एसिडिटी को बढ़ा सकता है। इसलिए भोजन के बाद कम से कम दो घंटे तक खाना खाने के बाद खड़ा रहने का प्रयास करें। 3. भोजन के दौरान धीरे-धीरे खाना खाएँ: जल्दबाजी से भोजन करने से भी एसिडिटी बढ़ सकती है, इसलिए

मलेरिया जीवाणु रोग।

  मलेरिया एक प्रकार की जीवाणु रोग है जो एनोफिलेस मच्छरों (Anopheles mosquitoes) के काटने से होता है। यह एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है, जो दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित करता है। मलेरिया का कारण प्लासमोडियम (Plasmodium) नामक परजीवी होता है, जो मानव शरीर के रक्त में प्रवेश करता है। मलेरिया के लक्षण शामिल बुखार, ठंड, तेज गर्मी और पसीने की बढ़ोतरी, थकान, शरीर में दर्द, मस्तिष्क में दर्द, उल्टी, पेट दर्द, दस्त, और जानलेवा अवस्था हो सकती है। अगर मलेरिया समय रहते पहचाना और उपचारित नहीं किया जाता है, तो यह जीवाणु शरीर के विभिन्न अंगों में फैल सकता है, जिससे गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे कि श्वसन कमी, अनुमापक लवणों के इमबैलेंस, मस्तिष्कीय कमजोरी और आंत्र मलेरिया (जिसमें पेट की उच्च आंत की सभी जगहों में मलेरिया होता है)। मलेरिया का उपचार विभिन्न प्रकार के दवाओं, जैसे कि एंटीमलेरियल दवाओं के सेवन द्वारा किया जाता है। इन दवाओं में क्लोरोक्विन (Chloroquine), हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (Hydroxychloroquine), अर्टेमिसिनिन (Artemisinin) और अर्टेमिसिनिन के विभिन्न संयोजन (Combination Thera

टाइफाइड रोग का वर्णन

  टाइफाइड एक जीवाणुसंचारित बीमारी है जो आमतौर पर खाने और पानी के माध्यम से फैलती है। यह जीवाणु सम्बंधित बीमारियों में से एक है जो वायुमंडल में पाया जाता है और आंतरिकता में विकसित होता है। टाइफाइड का कारक जीवाणु साइमनेला टाइफी नामक होता है। यह जीवाणु भोजन और पानी में मौजूद अन्य प्रदुषकों के कारण आमतौर पर शौचालय और पेयजल से मानवों तक पहुंचता है। जब यह जीवाणु शरीर में प्रवेश करता है, तो वह आंतरिकता में बढ़ता है और उच्चतम मात्रा में अवशोषण करने के कारण उपजाऊ संक्रमण की वृद्धि होती है। इससे हमारे पेट और आंतों के क्षेत्र में संक्रमण होता है, जिससे व्यक्ति को बुखार, तेजी से बढ़ने वाली तापमान, थकान, मुँह का सूखापन, पेट में दर्द, उल्टी, पेट की सूजन और पतली पतली दस्त वगैरह का अनुभव होता है। इसके अलावा, टाइफाइड के रोगी में छाती और पेट में रोगलिप्तता, नेत्रों के पीलापन, मस्तिष में दर्द। टायफाइड के अधिकांश मामलों में शरीर के ऊर्जा स्तर में कमी होती है और व्यक्ति कमजोर और थका-हारा महसूस करता है। रोगी के चेहरे पर लाल या गुलाबी रंग के दाने हो सकते हैं, जिन्हें "रोजेसोला" कहा जाता है। टाइफाइड

मिर्गी क्या है?और कैसे आती है ?

  मिर्गी जिसे अंग्रेजी में "Epilepsy" कहा जाता है, एक न्यूरोलॉजिकल (स्नायु विज्ञान) रोग है जिसमें व्यक्ति को नियमित रूप से अचानक और बहुतांतर क्रम में होने वाले आवृत्तियों का अनुभव होता है, जिन्हें आमतौर पर "मिर्गी आवेश" (Epileptic Seizures) कहा जाता है। यह आवेश व्यक्ति के दिमाग में अचानक और असामान्य इलेक्ट्रिकल गतिविधि के प्रतिक्रियाओं के कारण होता है। मिर्गी के कारण और उत्पत्ति के बारे में अभी तक पूर्णता से ज्ञात नहीं है। हालांकि, इसे एकाग्रचित्र (मलया) दौरों या नदी में छलांग लगाने के समय के तरीके के समान तत्वों के अचानक विज्ञान के कारण माना जाता है। इसके बावजूद, मिर्गी कई तत्वों पर प्रभावित हो सकती है, जैसे कि आँखों का दौरा, ब्रेन इंजरी, अंतर्जाल इंट्राकनेशन और बीच में विचित्रताएं, इत्यादि। मिर्गी के दौर के दौरान, व्यक्ति को विभिन्न रूपों में लक्षण दिख सकते हैं, जैसे कि मस्तिष्क की गतिविधि में असामान्यता, अचानक या अनियंत्रित शरीरीय चलन, अचानक इंद्रियों के अवरोध, अनुभवों और विचारों के असामान्य अनुभव, भूखंडन, गर्दन या सर की दोरभाग में बाधा, गर्मी, भौगोलिक परिवर्तन,

लकवा क्या है ?और कैसे होता है ?

  लकवा, जिसे अंग्रेजी में "stroke" कहा जाता है, एक आकस्मिक और गंभीर रोग है जो अचानक दिमागी रक्तस्राव (brain hemorrhage) या दिमाग की नसों में बंदिश (blockage) के कारण होता है। यह रोग व्यक्ति के न्यूरॉन्स (नर्वस सेल्स) के मरने की वजह से दिमाग के क्षेत्र में क्षति पहुंचाता है। इससे निर्धारित क्षेत्र में प्रमुख संचार यानी मस्तिष्क और शरीर के बीच बंध जाता है और इससे कई प्रकार के संक्रमित या विकारित संकेत उत्पन्न हो सकते हैं। लकवा का मुख्य कारण दो प्रकार के होते हैं: 1. इस्कीमिक लकवा: यह लकवा उन क्षेत्रों में होता है जहां दिमाग को खून आपूर्ति में अस्थायी बंदिश होती है। इसका मुख्य कारण अधिकतम मात्रा में रक्त थक्का (थक्का) और धमनियों का तनाव होना हो सकता है। 2. हेमोरेजिक लकवा: इसका कारण दिमागी रक्तस्राव होता है, जो एक खून की बहाव या रक्तस्राव के रूप में व्यक्त होता है। यह अक्सर दिमागी रक्तस्राव की कोई नस या अवसादित अंश के फटने से होता है। यदि लकवा हो जाता है, तो इसके कुछ सामान्य लक्षण हो सकते हैं, जैसे: 1. अकारण छोटी या बड़ी भूमिका का खो जाना जैसे अंग या पूरे एक साइड का गतिशीलता का न

डायबिटिस मधुमेह क्या होता है?डायाबिटिस मधुमेह समझें।

  डायबिटिस मधुमेह एक खतरनाक रोग है जो आपके शरीर में रक्त शर्करा स्तर को नियंत्रित करने वाले हार्मोन इंसुलिन की कमी के कारण होता है। यह रोग आपके खाद्य पदार्थों को प्राप्त करने के बाद भोजन को प्रबंधित करने और ऊर्जा उत्पादन के लिए आवश्यक इंसुलिन को निर्मित करने में कमी के कारण होता है। इंसुलिन शरीर के पंक्रियास नामक ग्रंथि द्वारा उत्पन्न किया जाता है। यह हार्मोन आपके खाद्य पदार्थों के रक्त में उचित रूप से ग्लूकोज का उपयोग करने के लिए शरीर की कोशिकाओं में इंसुलिन प्रतिष्ठान करता है। इंसुलिन के कमी के कारण, शरीर में ग्लूकोज का संचय नहीं होता है और रक्त में उच्च मात्रा में ग्लूकोज (रक्त शर्करा) बना रहता है। इसके परिणामस्वरूप, मधुमेह के मरीजों के रक्त में अत्यधिक शर्करा होता है, जिसे उच्च रक्त शर्करा (हाइपरग्लाइसीमिया) कहा जाता है। मधुमेह दो प्रकार का हो सकता है: प्रकार 1 डायाबिटीज में, पंक्रियास की बीमारी के कारण इंसुलिन का उत्पादन पूरी तरह से बंद हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, रोगी को आवश्यक इंसुलिन सप्लाई प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से इंसुलिन इंजेक्शन या इंसुलिन पंप की आवश्यकता होती है

हार्ट में ब्लॉकेज क्यों?और कैसे होता है ? हार्ट ब्लॉकेज कारण और उपचार

  हार्ट में ब्लॉकेज होने का मुख्य कारण अधिकांश मामलों में धमनीयों की एक प्रकार की बीमारी होना होती है, जिसे कोरोनरी आर्टरी रोग (Coronary Artery Disease, CAD) कहा जाता है। हार्ट को ऑक्सीजन और पोषण प्रदान करने वाली धमनीयां होती हैं, और जब इन धमनीयों में किसी भी कारणवश रक्त प्रवाह में कोई बाधा हो जाती है, तो इसे ब्लॉकेज कहा जाता है। ब्लॉकेज के पीछे कारणों में सबसे आम है एक पदार्थ, जिसे प्लाक (plaque) कहा जाता है, जो धमनी की दीवारों पर जमा हो जाता है। यह प्लाक बनने का कारण अधिकतर मामलों में शरीर में एक पदार्थ के वस्त्रोपचार (लिपिड्स, कोलेस्टेरॉल आदि) का अधिक जमाव होता है, जो धमनी की दीवारों में संचित हो जाता है। जब यह प्लाक बड़ा हो जाता है या तोड़ देता है, तो यह रक्त की धमनी में ब्लॉकेज पैदा कर सकता है। इसके अलावा, धमनी की दीवार के इंज़्यूनो का विकार (जैसे कि दीवारों की मोटाई, मजबूती, लचीलापन) या धमनी के अंदर कूटन या अल्सर की स्थिति भी ब्लॉकेज का कारण बन सकती है। इसके अलावा, कुछ अन्य कारक भी हार्ट में ब्लॉकेज को बढ़ा सकते हैं, जैसे कि धमनीयों का अंदरीकरण (धमनीयों की दीवारों पर खोने का उत्प

हार्टअटैक क्यो?और कैसे आता है ?

  हृदयघात (हार्ट अटैक) एक मेडिकल स्थिति है जिसमें हृदय की धमनियों में रक्तसंचार कम हो जाता है या पूर्ण रूप से बंद हो जाता है, जिससे हृदय के मांसपेशी को ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा प्राप्त नहीं होती है। इसका परिणाम स्थायी या अस्थायी नकारात्मक प्रभाव होता है, जिससे अंग में मृत्यु हो सकती है। हार्ट अटैक का मुख्य कारण अस्थिरायमिति या आधारभूत हृदय रोग (कोरोनरी हृदय रोग) होता है जिसमें हृदय की धमनियों में जमाव, चिकनाई या प्लैक निर्माण होता है। इसके परिणामस्वरूप, रक्तसंचार कम हो जाता है और यदि कोई धमनी पूरी तरह से बंद हो जाती है, तो आगे के इस्सर्ट समय में अंग का हिस्सा इस्तीफा दे सकता है। हार्ट अटैक के मुख्य कारकों में शामिल हो सकते हैं: 1. आधारभूत हृदय रोग (कोरोनरी हृदय रोग): यह रोग धमनियों में जमाव, चिकनाई या प्लैक के निर्माण के कारण होता है, जो धीरे-धीरे हृदय की धमनी और मांशपेशी के निचले हिस्से को आंदोलित करने में सक्षम नहीं कर पाते हैं। इससे हृदय को आवश्यक ऑक्सीजन और पोषण की कमी हो जाती है और धमनियाँ बंद हो सकती हैं, जिससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। 2. धमनी के अवसाद (एरोसियन) या धमनी

ब्लडप्रेशर क्या होता है?

ब्लड प्रेशर यानी रक्तचाप, हमारे शरीर के अंदर रक्त के दबाव को दर्शाता है। जब हमारे हृदय धड़कने पर रक्त को अपनी दीवारों के माध्यम से शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचाता है, तो वह रक्त एक प्रकार का दबाव उत्पन्न करता है। इस दबाव को ब्लड प्रेशर कहा जाता है। ब्लड प्रेशर दो मात्राओं में मापा जाता है: सिस्टोलिक प्रेशर और डायस्टोलिक प्रेशर। सिस्टोलिक प्रेशर वह प्रेशर होता है जब हमारे हृदय धड़कने पर रक्त को अपनी दीवारों के माध्यम से पुष्टि करता है। यह प्रेशर जब सबसे अधिक होता है, तब ब्लड प्रेशर की संख्या सिस्टोलिक प्रेशर कहलाती है। डायस्टोलिक प्रेशर वह प्रेशर होता है जब हृदय आराम से बीच-बीच में धड़कने के बीच रक्त को पुष्टि करता है। यह प्रेशर जब सबसे कम होता है, तब ब्लड प्रेशर की संख्या डायस्टोलिक प्रेशर कहलाती है। ब्लड प्रेशर का माप आमतौर पर मिलीमीटर मरकुरी (mmHg) में किया जाता है। एक आम ब्लड प्रेशर की संख्या 120/80 mmHg होती है। यहां, 120 mmHg सिस्टोलिक प्रेशर को दर्शाता है और 80 mmHg डायस्टोलिक प्रेशर को दर्शाता है। सामान्यतः, स्वस्थ व्यक्ति का ब्लड प्रेशर इस रेंज के अंदर होता है। ब्लड प्रेशर

एनामोली स्कैन क्या है?और कब होता है ?

  एनामोली स्कैन (Anomaly Scan) गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला एक परीक्षण है जो गर्भस्थ शिशु की विकासाधिकारिता और सामान्यता की जांच करने के लिए किया जाता है। यह परीक्षा एक उच्च संकल्पी उल्लेखात्मक विश्लेषण है जिससे शिशु की स्वस्थता, विकास और संरचना की जांच की जाती है। एनामोली स्कैन कार्यक्रम में, गर्भावस्था के लगभग 18 से 20 हफ्ते के बीच की अवधि में, एक उल्लेखात्मक सोनोग्राफी (Sonography) परीक्षा की जाती है। इस परीक्षा में, शिशु की संरचनाओं, उसके अंगों, दिल, मस्तिष्क, वृद्धि और अन्य विशेषताओं की जांच की जाती है। एनामोली स्कैन शिशु के मानवीय विकास में किसी असामान्यता की पहचान करने की क्षमता रखता है जैसे कि विकास के दौरान किसी अंग की असामान्य गठन, संरचना, या किसी रोग या विकार की संभावना। यह परीक्षा गर्भावस्था में संभावित संरचनाओं की जांच करने के लिए होती है और विशेष रूप से मां की स्कैनिंग, प्राकृतिक गर्भावस्था के दौरान होती है। यह परीक्षा महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे किसी असामान्यता की पहचान हो सकती है और उचित चिकित्सा या परामर्श की आवश्यकता हो सकती है। एनामोली स्कैन में निम्नलिखित पहलुओ

सोनोग्राफी क्या है?और क्यों करायी जाती है ?

  सोनोग्राफी (Sonography) एक आयरिको टेक्नोलॉजी है जिसका उपयोग उल्ट्रासाउंड (ultrasound) तकनीक के माध्यम से शरीर के अंदर की छवियाँ बनाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग विभिन्न मेडिकल प्रयोजनों के लिए किया जाता है, जैसे कि रोगी के अंदर किसी अंग या ऊतक में समस्या की जांच, गर्भावस्था की मॉनिटरिंग, और रोग की निदान आदि। सोनोग्राफी में, उल्ट्रासाउंड में उपयोग होने वाले उच्च आवृत्ति के आवेदनिक प्रतिध्वनियों का उपयोग करके, ट्रांसड्यूसर (transducer) नामक यंत्र को शरीर की सतह पर रखकर उसके अंदर की तरंगों को उत्पन्न किया जाता है। इन तरंगों को रिकॉर्ड किया जाता है और एक कम्प्यूटर द्वारा इन तरंगों के आधार पर छवियाँ बनाई जाती हैं। ये छवियाँ डॉक्टर द्वारा विश्लेषित की जाती हैं और मेडिकल डायग्नोसिस के लिए उपयोग की जाती हैं। सोनोग्राफी अस्पतालों, चिकित्सालयों और रेडियोलॉजी केंद्रों में व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाती है और कई प्रकार की परीक्षाओं के लिए आवश्यक होती है। यहां कुछ मुख्य कारण दिए जाते हैं जिनके लिए सोनोग्राफी कराई जाती है: 1. गर्भावस्था में जांच: सोनोग्राफी गर्भावस्था के दौरान बच्चे की स्थिति

पथरी के लक्षण और कारण

  पथरी (किडनी स्टोन) एक सामान्य चिकित्सा स्थिति है जिसमें किडनी में पथरी यानि कि कठोर पदार्थ की गाठें बनती हैं। ये पथरी केमिकल्स और मिनरल्स के संघटकों के अतिरिक्त शरीर के विषाणुओं से बनती हैं। मुख्य रूप से, पथरी कैल्शियम ऑक्सलेट, कैल्शियम कार्बोनेट, कैल्शियम फॉस्फेट या मैग्नीशियम ऑक्सलेट के संघटकों से बनी होती हैं। किडनी स्टोन बनने का मुख्य कारण यह होता है कि मूत्र में पथरी बनाने वाले संघटकों की मात्रा बढ़ जाती है और किडनी में वे संघटक उच्च संक्रमण या उच्च संकुचन के कारण निकलने के बजाय संघटन करते हैं। जब इन संघटकों की मात्रा अत्यधिक हो जाती है, तो ये सामरिक पदार्थ गाठों की रूप में शरीर में जमा हो जाते हैं। पथरी, जिसे आमतौर पर "किडनी स्टोन" भी कहा जाता है, पथरी विज्ञान में "नेरोलिथियासिस" के रूप में जानी जाती है। यह एक पथरी होती है जो मूत्र यात्राओं के दौरान किडनी के अंदर बनती है। पथरी मूत्रमार्ग में एक छोटी सी कठोर गाठ की रूप में पायी जाती है, जो कि किडनी से नीचे मूत्राशय तक जाने के दौरान तकलीफ़ पैदा कर सकती है। पथरी का मुख्य कारण मूत्रमार्ग में शरीर के आराम के अनुर

लिवर सिरोसिस का विवरण

लिवर सिरोसिस एक पुरानी और प्रगतिशील लिवर बीमारी है जिसमें लिवर ऊतकों का लगातार और गंभीर नुकसान होता है। यह बीमारी अक्सर लंबे समय तक किसी अन्य लिवर रोग या अनुयायी चिकित्सा समस्या के परिणामस्वरूप विकसित होती है। जब लिवर के ऊतकों को घातक नुकसान होता है, तो उन्हें चिकना और स्नायुरेखित ऊतकों में परिवर्तित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया के कारण, लिवर की सामरिक अवस्था खराब हो जाती है और इसके नतीजे में जीवनकारी गतिविधियों को प्रभावित करने वाली समस्याएं विकसित हो सकती हैं। लिवर सिरोसिस के कारण शामिल हो सकते हैं अत्यधिक शराब पीना, विषाक्त पदार्थों का सेवन, असमय भोजन, अपूर्ण आहार, पूर्ण भोजन के अभाव, मोटापा, मधुमेह, अपच, हेपेटाइटिस बी और सी इन्फेक्शन, लंबे समय तक कीटाणु इंफेक्शन और गंभीर रक्तचाप का संकेत हो सकता है। लिवर सिरोसिस के लक्षण विभिन्न हो सकते हैं, जैसे कि थकान, भूख की कमी, और उल्टी, पेट में सूजन, पेट में दर्द या तनाव, वजन कमी, त्वचा और आंखों में पीलापन, हेपेटाइटिस और जैंडिस के लक्षण, पेशाब की मध्यम रक्त रंग, खून की उच्च रक्त चाप, गुर्दे की समस्याएं, विषाक्तता और वृद्धि के गतिशील बालूकों